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क्या अंबिकापुर की जनता इस बार महिला महापौर चुनने जा रही है?

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संतोष दास सरल का संकलन

बीजेपी की मेयर प्रत्याशी मंजूषा क्यूं भारी हैं कॉंग्रेस के अजय तिर्की पर?

//अंबिकापुर//
अंबिकापुर के नगरीय निकाय चुनाव में महापौर प्रत्याशी के रूप में भाजपा से मंजूषा भगत के नामांकन दाखिल करते ही नगर में ज़बर्दस्त चर्चा छिड़ी है कि क्या इस बार अंबिकापुर की जनता महिला महापौर चुनने जा रही है? बीजेपी की मेयर प्रत्याशी मंजूषा इस बार क्यूं भारी हैं कॉंग्रेस के प्रत्याशी अजय तिर्की पर? इन दोनों सवालों के जवाब हालिया चुनावों के परिणामों से नगर की जनता स्वयं दे रही है। यदि पिछले लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में भाजपा को अंबिकापुर शहर से मिले वोट पर नज़र डालें तो लोकसभा में बीजेपी 21,000 से तथा विधानसभा में 8,500 वोट से कॉंग्रेस से आगे रही है।अध्ययन करें तो लोकसभा व विधानसभा दोनों चुनाव में बीजेपी की जीत का प्रमुख कारण अंबिकापुर शहर से मिले एकतरफ़ा समर्थन व वोट रहे हैं। क्या यही सिलसिला मेयर चुनाव में भी दोहराने जा रही है भाजपा? दोनों चुनावों के ताजा आंकड़े फिलहाल तो यही बयां करते हैं। नगर पालिक निगम अंबिकापुर के चुनावी इतिहास की बात करें तो 2004, 2009, 2014 तथा 2019 के नगरीय निकाय चुनाव में से दो बार भाजपा तथा दो बार कॉंग्रेस के मेयर रहे हैं। पिछला मेयर चुनाव तो सही मायनों में प्रत्यक्ष हुआ ही नहीं, पार्षद दल ने बहुमत के आधार पर अपना महापौर चुना था जिसमें कॉंग्रेस के डॉ अजय तिर्की विजयी हुए थे। पिछले कार्यकाल में अंबिकापुर नगर निगम के कुल 48 वार्डों में भाजपा के 20 तथा कॉंग्रेस के 27 पार्षद जीतकर आए थे। इस बार फिर से निगम क्षेत्र के 48 वार्डो में चुनाव तो हो रहे हैं परंतु नए परिसीमन में। छत्तीसगढ़ की बीजेपी सरकार ने चुनाव पूर्व कई वार्डों का परिसीमन कराया जिसमें जाहिर है भाजपा के हितों को ध्यान में रखकर वार्डों की डेमोग्राफी को व्यवस्थित किया गया होगा। ठीक वैसे ही जैसी पिछली कॉंग्रेस की भूपेश सरकार ने कॉंग्रेस पार्टी के हिसाब से वार्डों का परिसीमन 2019 के चुनाव से पूर्व कराया था जिसका लाभ उन्हें तत्कालीन नगरीय निकाय चुनाव में भी मिला। उस हिसाब से अंदाजा लगाया जाए तो इस बार नगर निगम में जीतकर आने वाले भाजपा पार्षदों की संख्या 25 से 30 तथा कॉंग्रेसी पार्षदों की संख्या 18 से 23 तक हो सकती है। जहां तक महापौर प्रत्याशी का प्रश्न है भाजपा प्रत्याशी श्रीमती मंजूषा भगत फिलहाल कॉंग्रेस प्रत्याशी डॉ अजय तिर्की पर भारी पड़ती दिख रही हैं। उसका प्रमुख कारण है कॉंग्रेस की नगर निगम सरकार की दस सालों की स्वाभाविक एंटीइंकम्बेंसी। ज्ञात हो कि 2014 में जब डॉ अजय तिर्की एक नए चेहरे के रूप में कॉंग्रेस के महापौर प्रत्याशी बनकर विजयी हुए थे उस समय भी मंजूषा भगत भाजपा की महापौर प्रत्याशी थीं। अब 2025 में फिर से इतिहास अपने आप को दोहराने जा रहा है, परंतु इस बार कॉंग्रेस के मेयर प्रत्याशी अजय तिर्की अपने खिलाफ़ चल रहे भारी एंटीइंकम्बेंसी की काट ढूंढने में जूझते नज़र आ रहे हैं। भाजपा महापौर प्रत्याशी मंजूषा की बात करें तो वो तीन बार वार्ड पार्षद, भाजपा जिला संगठन में उपाध्यक्ष तथा महिला मोर्चा की पूर्व में जिलाध्यक्ष रहकर नगर में सक्रियता से काम करती रही हैं। जुझारू महिला जनप्रतिनिधि के रूप में उनकी पहचान महिला वोटरों के बीच उन्हें लोकप्रिय बना रही है ऐसे संकेत मिलने शुरू हो गए हैं। दूसरी ओर डॉ अजय तिर्की की डॉक्टर वाली छवि उन्हें तीसरी बार भी महापौर बना पाएगी इसमें संदेह है, क्यूंकि शहर की आम जनता इस बार उनसे उनके व्यवहार पर नहीं बल्कि निगम की उपलब्धियों पर सवाल पूछेगी जिसका जवाब दे पाना शायद उनके लिए मुश्किल होगा। 2019 में टी एस सिंहदेव को ऐतिहासिक मतों से विधानसभा जिताने वाली अंबिकापुर की जनता को कॉंग्रेस सरकार से बहुत उम्मीदें थीं पर उपमुख्यमंत्री टी एस सिंहदेव और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के आपसी लड़ाई-झगड़े में शहर को विकास के बजट का एक ढेला तक नहीं मिला। उल्टे निगम को डमी महापौर, चार महापौर, सुपर महापौर चला रहे हैं जैसे उपमाओं से अलंकृत करने की विपक्षी कोशिश से इन पांच वर्षों में निगम सरकार की छवि भी लगातार धूमिल होती रही। तीसरी बार नगर निगम में सरकार बनाने के लिए जनता के बीच वोट मांगने जाने वाली कॉंग्रेस पार्टी के सामने इस बार न केवल अपनी उपलब्धियों को बताने का टोंटा है बल्कि निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से बचने तथा अपनी घोषणाएं व वादे पूरा न कर पाने की सफाई देने की कठिन चुनौती भी है। भाजपा की बात करें तो विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अंबिकापुर शहर की जनता के एकतरफ़ा समर्थन से महापौर व पार्षद प्रत्याशियों सहित पूरा बीजेपी संगठन उत्साह में है। जहां विष्णु देव सरकार की महतारी वंदन योजना सहित अन्य योजनाओं के लाभार्थी भाजपा के पक्ष में वोट कर सकते हैं वहीं भाजपा के पूर्व महापौर प्रबोध मिंज के दस वर्षों के कार्यकाल में हुए सड़क, पानी, बिजली तथा जनसुविधाओं सहित नगर विकास की सैकड़ों उपलब्धियां भी भाजपा जनता को गिना सकती है। शहर के विकास के लिए प्रदेश सरकार के साथ जाने की शहरी वोटरों की आम धारणा भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकती है। कुल मिलाकर इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी यदि अप्रत्याशित परिणामों के साथ निगम में सरकार बना ले तो कोई आश्चर्य नहीं।  
बहरहाल, किसी भी चुनाव परिणाम को लेकर लगाए जाने वाले कयास सही साबित तभी होते हैं जब परसेप्शन पर परफेक्शन के साथ जमीनी स्तर पर काम होता है। आगामी 11 फरवरी को नगरीय निकाय चुनाव का मतदान है। चुनाव आयोग द्वारा प्रचार हेतु दिए गए अत्यंत कम समय में जो दल जितनी जल्दी जनता के बीच पहुंचकर अपनी बात रख उनका मन बनाने में कामयाब होगा अंततः बाजी वही मारेगा।

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